आज गोकुल में बजी बंसी, नाचे मोर पंखों वाले,
माखन-मिश्री की महक से, राधा के आँचल भी डोले।
नंद के आँगन आया कान्हा, हँसी में चाँद छिपा जाए,
माँ यशोदा की आँखों में, बस कान्हा ही समा जाए।
मुरली की मधुर तान सुन, मनवा नंदलाल पे खो जाए,
रंग बरसाए प्रेम का, सब द्वारकाधीश को गाए।
श्याम रंग में डूब गया, आज हर मन, हर कोना,
जन्माष्टमी की रात कहे—
“मेरा कान्हा, मेरा सोना।”






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