“किसी भी रिश्ते की शुरुआत में, खासकर विवाह में, हम अक्सर अपने साथी से पूर्णता की उम्मीद करते हैं—कि वे हर ज़रूरत पूरी करेंगे और हर भूमिका निभाएंगे। लेकिन सच्चा प्रेम पूर्णता नहीं, बल्कि स्वीकार करने पर आधारित होता है। समय के साथ हमें समझ आता है कि वे वास्तव में क्या दे सकते हैं, कहाँ संघर्ष करते हैं, और हम एक-दूसरे को कैसे संतुलित कर सकते हैं। असली सामंजस्य माँगने से नहीं, बल्कि प्रेम और समझ के साथ ढलने से पैदा होता है।”


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